Friday, December 4, 2009

दो पल पहले मुलाक़ात थी

उङते काग़ज़, करते बयान्‍,
इनकी भी किसी से
दो पल पहले मुलाक़ात थी,

बढ़ चले क़दम,
कनारे उन पटरियों
कहानी जिनके रोज़ ये साथ थी,

फिर आएगी दूजी रेल,
फिर चीरेगी ये सन्नाटा
जैसे जिन्दगी से फिर मुलाक़ात थी,

फिर लौटेंगे और,
भारी क़दमों से,जैसे
कोई गहरी सी बात थी,

छूट चुकी है रेल,
अब सिर्फ काली स्याहा रात थी |