Monday, May 16, 2011

हाले दिल क्या बयां करे

हाले दिल क्या बयां करे 
बस इतना समझ लीजिये, 
नैनो के सामने तो है 
पर बात नही होती
अगर खता हमसे कुछ हुई है 
तो खुल के कहे तो कोई बात बने
हम तो आपसे कुछ कह नही पाते
अगर आप ही कुछ कह दे कोई बात बने 
नजरों से तो हमने भी बहुत कुछ कहने की कोसिस की 
अगर आप अधरों से कुछ कह दे कोई बात बने

Sunday, May 15, 2011

कभी जमूद कभी सिर्फ़ इंतशार-सा है ।

कभी जमूद कभी सिर्फ़ इंतशार-सा है ।

जहाँ को अपनी तबाही का इंतज़ार-सा है ।



मनु की मछली, न कश्ती-ए-नूह और ये फ़जा


कि क़तरे-क़तरे में तूफ़ान बेक़रार-सा है ।



मैं किसको अपने गरेबाँ का चाक दिखलाऊँ


कि आज दामने-यज़्दाँ
 भी तार-तार-सा है ।


सजा-सँवार के जिसको हज़ार नाज़ किए


उसी पे ख़ालिके-कोनैन
 शर्मसार-सा है ।


तमाम जिस्म है बेदार
, फ़िक्र ख़ाबीदा

दिमाग़ पिछले ज़माने की यादगार-सा है ।



सब अपने पाँव पे रख-रखके पाँव चलते हैं


ख़ुद अपने दो
 पे हर आदमी सवार-सा है ।


जिसे पुकारिए मिलता है इक खंडहर-से जवाब


जिसे भी देखिए माज़ी
 का इश्तहार-सा है ।


हुई तो कैसे बियाबाँ
 में आके शाम हुई

कि जो मज़ार यहाँ है मेरा मज़ार-सा है ।



कोई तो सूद चुकाए, कोई तो ज़िम्मा ले


उस इन्क़लाब का, जो आज तक उधार-सा है ।

Tuesday, May 10, 2011

दामाद और ससुर की वार्तालाप

अपने भावी दामाद से 
स्नेह से पूछा ससुर जी ने 
मेरी पुत्री से जीवन के खेवन - हार
आपको दहेज़ में क्या चाहिए 
शर्म का लबादा उतर शान से फरमाइए 
बिन मांगी मुरादे पाईये 
ससुर जी का सवाल सुन 
दामाद ने सोचा क्या - क्या न मांग लू 
सोचना हुआ मुहाल 
अपनी जिद्द से हम मजबूर है 
ज्यादा कुछ नही चाहिए 
आपकी बेटी तो खुद लक्ष्मी है 
हमें तो बस "टर" चाहिए
यह "टर" क्या है बेटा 
दामाद जी ने बड़ी अदब से समझाया 
टर यानि मोटर, स्कूटर, रेफ्रिजरेटर, कैलकुलेटर, कंप्यूटर जनरेटर, ट्रांजिस्टर 
इतना सुन ससुर जी ने कहा 
हम अभी आते है बेटा 
और तुम्हे पहनते है स्वेटर 
फिर देते है अपनी डाटर 
जिसके हाथ में है हंटर 
जो तुम्हे मर कर बना देगी वेटर 
कुछ समझे मिस्टर
दामाद यह सुन कर भागे जैसे हेलीकाप्टर 



Thursday, May 5, 2011

हमें तो अपनों ने लूटा,गैरों में कहाँ दम था

हमें तो अपनों ने लूटा,गैरों में कहाँ दम था.

मेरी हड्डी वहाँ टूटी,जहाँ हॉस्पिटल बन्द था.

मुझे जिस एम्बुलेन्स में डाला,उसका पेट्रोल ख़त्म था.

मुझे रिक्शे में इसलिए बैठाया,

क्योंकि उसका किराया कम था.

मुझे डॉक्टरों ने उठाया,नर्सों में कहाँ दम था.

मुझे जिस बेड पर लेटाया,उसके नीचे बम था.

मुझे तो बम से उड़ाया,गोली में कहाँ दम था.

और मुझे सड़क में दफनाया,

क्योंकि कब्रिस्तान में फंक्शन था

Thursday, May 27, 2010

कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है

कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है,

मैं तुझसे दूर कैसा हुँ तू मुझसे दूर कैसी है
ये मेरा दिल समझता है या तेरा दिल समझता है !!!

समुँदर पीर का अंदर है लेकिन रो नहीं सकता
ये आसुँ प्यार का मोती है इसको खो नहीं सकता ,
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना मगर सुन ले
जो मेरा हो नहीं पाया वो तेरा हो नहीं सकता !!!
मुहब्बत एक एहसानों की पावन सी कहानी है
कभी कबीरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है,
यहाँ सब लोग कहते है मेरी आँखों में आसूँ हैं
जो तू समझे तो मोती है जो न समझे तो पानी है !!!

भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हँगामा
हमारे दिल में कोई ख्वाब पला बैठा तो हँगामा,
अभी तक डूब कर सुनते थे हम किस्सा मुहब्बत का
मैं किस्से को हक़ीक़त में बदल बैठा तो हँगामा !!!
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जिसकी धुन पर दुनिया नाचे, दिल एक ऐसा इकतारा है,
जो हमको भी प्यारा है और, जो तुमको भी प्यारा है.
झूम रही है सारी दुनिया, जबकि हमारे गीतों पर,
तब कहती हो प्यार हुआ है, क्या अहसान तुम्हारा है.

जो धरती से अम्बर जोड़े , उसका नाम मोहब्बत है ,
जो शीशे से पत्थर तोड़े , उसका नाम मोहब्बत है ,
कतरा कतरा सागर तक तो ,जाती है हर उमर मगर ,
बहता दरिया वापस मोड़े , उसका नाम मोहब्बत है .

पनाहों में जो आया हो, तो उस पर वार क्या करना ?
जो दिल हारा हुआ हो, उस पे फिर अधिकार क्या करना ?
मुहब्बत का मज़ा तो डूबने की कशमकश में हैं,
जो हो मालूम गहराई, तो दरिया पार क्या करना ?

बस्ती बस्ती घोर उदासी पर्वत पर्वत खालीपन,
मन हीरा बेमोल बिक गया घिस घिस रीता तनचंदन,
इस धरती से उस अम्बर तक दो ही चीज़ गज़ब की है,
एक तो तेरा भोलापन है एक मेरा दीवानापन.

तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है समझता हूँ,
तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है समझता हूँ,
तुम्हे मै भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नही लेकिन,
तुम्ही को भूलना सबसे ज़रूरी है समझता हूँ

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तुम अगर नहीं आयीं…गीत गा ना पाऊँगा.
साँस साथ छोडेगी सुर सजा ना पाऊँगा..
तान भावना की है..शब्द शब्द दर्पण है..
बाँसुरी चली आओ..होट का निमन्त्रण है..

तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है..
तीर पार कान्हा से दूर राधिका सी है..
दूरियाँ समझती हैं दर्द कैसे सहना है..
आँख लाख चाहे पर होठ को ना कहना है
औषधी चली आओ..चोट का निमन्त्रण है..
बाँसुरी चली आओ होठ का निमन्त्रण है

तुम अलग हुयीं मुझसे साँस की खताओं से
भूख की दलीलों से वक़्त की सजाओं ने..
रात की उदासी को आँसुओं ने झेला है
कुछ गलत ना कर बैठे मन बहुत अकेला है
कंचनी कसौटी को खोट ना निमन्त्रण है
बाँसुरी चली आओ होठ का निमन्त्रण है
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ओ कल्पव्रक्ष की सोनजुही..
ओ अमलताश की अमलकली.
धरती के आतप से जलते..
मन पर छाई निर्मल बदली..
मैं तुमको मधुसदगन्ध युक्त संसार नहीं दे पाऊँगा
तुम मुझको करना माफ तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा.
तुम कल्पव्रक्ष का फूल और
मैं धरती का अदना गायक
तुम जीवन के उपभोग योग्य
मैं नहीं स्वयं अपने लायक
तुम नहीं अधूरी गजल सुभे
तुम शाम गान सी पावन हो
हिम शिखरों पर सहसा कौंधी
बिजुरी सी तुम मनभावन हो.
इसलिये व्यर्थ शब्दों वाला व्यापार नहीं दे पाऊँगा
तुम मुझको करना माफ तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा
तुम जिस शय्या पर शयन करो
वह क्षीर सिन्धु सी पावन हो
जिस आँगन की हो मौलश्री
वह आँगन क्या व्रन्दावन हो
जिन अधरों का चुम्बन पाओ
वे अधर नहीं गंगातट हों
जिसकी छाया बन साथ रहो
वह व्यक्ति नहीं वंशीवट हो
पर मैं वट जैसा सघन छाँह विस्तार नहीं दे पाऊँगा
तुम मुझको करना माफ तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा
मै तुमको चाँद सितारों का
सौंपू उपहार भला कैसे
मैं यायावर बंजारा साँधू
सुर श्रंगार भला कैसे
मैन जीवन के प्रश्नों से नाता तोड तुम्हारे साथ सुभे
बारूद बिछी धरती पर कर लूँ
दो पल प्यार भला कैसे
इसलिये विवष हर आँसू को सत्कार नहीं दे पाऊँगा
तुम मुझको करना माफ तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा
तुम मुझको करना माफ तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा

Wednesday, February 17, 2010

डिप्लोमसी कॉमेडी कथाकथन-2

आज लाफ्टर क्लबमें दो मेहमान आये थे. वे सबको अलग अलग एक्सरसाईज का प्रात्यक्षीक देने लगे. पहले तो उन्होने कुछ योगा का प्रात्यक्षीक बताया. मर्कटासन, हलासन... पता चला की उसमेंसे शवासन लोगोंको बहोत भा गया फिर पवनमुक्तासन सिखाया गया ... कुछ लोगोंने पवनमुक्तासन को उसके नाम के अनुरुप सच्चा ठहराया... मै तो कहता हूं की पवनमुक्तासन के तुरंत बाद अनुलोम विलोम होना चाहिये... ताकी पवनमुक्तासन के बाद अलगसे नाक दबाने की जरुरत ना पडे. अलग अलग प्रकार के योगा का प्रात्यक्षीक देने के बाद उसने एक गलेमे पैर अटकानेवाला प्रकार किया. वह प्रकार करते वक्त वह जोर जोर से चिल्लाने लगा. उसका वह चिल्लाना उस योग का भाग ना होकर उसके पैर गर्दनमे सचमुछ अटक गये थे ... यह सबको उसके साथीदार ने पैर गलेसे निकालनेके लिए उसकी मदत कि तब पता चला. सब प्रात्यक्षिक करते वक्त बिचबिचमें वे लोग बडी उत्सुकतासे पार्कके गेटकी तरफ देख रहे थे. शायद किसीकी राह देख रहे हो. वह ऐसा क्यो देख रहे यह हमें बादमें पता चला. फिर उन्होने कुछ स्कुल की पीटी जैसे वार्मीग एक्सरसाईजेस लिए. दाया हात उपर करो... उनका इन्स्ट्रकशन आया. अब दाया हात कौनसा यह देखनेके लिये मिश्राजीने बाजूवाले कि तरफ देखा. वह उसके बाजूवाले को देख रहा था. वहां पांडेजी खडे थे. उन्होने खाने की ऍक्शन कर दाया हात झट से उपर किया. अब अगर उन्होने बाया हाथ उपर करो ऐसा आदेश दिया तो पांडेजी कौनसी ऍक्शन करेंगे इसकी कल्पना ना करना ही अच्छा है.

वे डेमोस्ट्रेशन वाले बिच बिच मे पार्क के दरवाजे की तरफ क्यों देख रहे थे यह हमें प्रेसवाले आनेके बाद पता चला. अब तो हम एक तरफ रह गए और वे डेमोस्ट्रेशन देने वाले कॅमेरे की तरफ देखकर इन्स्ट्रक्शन देने लगे. अच्छा तो यह उनकी डिप्लोमसी थी. मै फिर डिप्लोमसी के बारे मे सोचने लगा. आज की तारीख मे इस डिप्लोमसी का फैलाव इतनी तेजी से कैसे हो रहा है. मुझे आशंका होने लगी की कही किसी कॉलेज में डिप्लोमा इन डिप्लोमसी ऐसा कोई कोर्स तो नही चलाया जा रहा है?

सोचते सोचते कब एक्सरसाईज खत्म हूवा कुछ पता ही नही चला. मै घर जाने के लिए निकला. फिर मेरे पास वह पहलेवाला साथी आगया. अभीभी वह उस तरक्कीवाली बात पर अटका हूवा था.

"" आज मानवजातने इतनी तरक्की की है फिरभी आप इसे तरक्की नही मानते... आखीर क्यों? उसने पुछा.

""देखो आज आदमी पर ऐसी नौबत आई की वह किसीसे खुलकर हंस नही सकता... और उस हंसी की कमी को पुरा करने के लिये उसे... किसी लाफ्टरक्लबमे.... जाकर पागलोंकी तरह... झूटमूठ हंसने की नौबत आगई है... इसे क्या तुम तरक्की कहोगे... मै तो कहता हूं की इससे बडी कोई अवनती नही है...'' मै आवेशमें बोल गया.

हम पार्कसे बाहर आकर घर जाने के लिए निकले. वह मेरे साथ वाला आदमी गुमसुम था. वह कुछ जादाही सिरीयस हूवा था.

"" अरे जादा सिरीयसली मत लो... मै ऐसेही बोल गया ... बाय द वे तुम्हारी कौनसी बिल्डींग है...''

मैने बात बदलते हूए पुछा. उसने एक बिल्डीग की तरफ इशारा कर कहा. वो वाली... फ्लॅट नं. सी202...

""अच्छा आप उस बिल्डींमे रहते है... मै अक्सर वहां आता जाता रहता हू... कभी आया तो आपके घर जरुर आवूंगा...'' मैने कहा.

"" आईये जरुर आईए...'' उसने कहां और वह एक गलीमे घर जाने के लिए मुडा.

मेरा विचारचक्र फिरसे शुरु हुवा. डिप्लोमसी के बारेमें..

डिप्लोमसी जिसपर बितती है उसको उससे भले ही गीला हो लेकीन डिप्लोमसी एक कला है. इसमें बहोत लंबा सोचना पडता है. अब देखोना अभी जो मेरे साथ था उसको क्या मालूम की मै एक एल आय सी एजंट हू... और अभी अभी मैने उसे झांसेमे लेना शुरु किया है. वह इस बातसे बिलकुल बेखबर है की धीरे धीरे दोचार दिनमें मै उससे कमसे कम एक एल आय सी पॉलीसी लेकर ही छोडूंगा.

कोई डिप्लोमसी को कला कहता है तो किसीको उससे गिला होता है. लेकिन ये भी सच है की भगवान ने भी इन्सान के साथ बडी बेखुबीसे डिप्लोमसी निभाई है. क्योंकी भगवान ने किसीको कम तो किसीको जादा दिया. फिरभी जादातर लोग उसे श्रध्दासे याद करते है. भगवान जैसी डिप्लोमसी शायद कोई नही कर पाये. या फिर उसके जैसी डिप्लोमसी करने बादही शायद कुछ इन्सानभी भगवान बन जाते है...

डिप्लोमसी कॉमेडी कथाकथन

यार तु बडा डिप्लोमॅटीक है... इससे जादा साफ सुधरा डिप्लोमॅटीक कोई स्टेटमेंन्ट नही होगा. क्योंकी असल में उसको कहना होता है... साले ... तु बडा हरामी है... वैसे डिप्लोमसीकी अगर 'डीप्लोमॅटीक' व्याख्या की जाए तो उसका मतलब होता है ... टॅक्टीकली बिहेव करना ताकी उसमे सब का हित हो. लेकिन आज के जमाने के हिसाब से डिप्लोमसीका मतलब होता है .... मुहं मे राम बगल में छुरी. या फिर अपने दिल की बात चेहरे पर जाहिर ना होने देना. कुछ लोग तो उसके भी आगे जाते है. वे दिल में कुछ, चेहरे पर कुछ , बोलते है कुछ, और करते है और कुछ. ये अलग बात की होता और ही कुछ है. और यकिन मानिए जमाना ही आजकल वैसा है की अगर आप डिप्लोमॅटीक नही हो तो आपकी खैर नही. अरे भाई हम किसी के साथ खुले दिल से हंस नही सकते. हंसे तो फंसे. अगर किसीको गलतीसे खुलकर स्माईल दो तो वह आपको सिधासादा समझकर जरुर कही ले जाकर बकरे की तरह काटेगा. कुछ दिन तक तो आप स्माईल करनाभी भूल जाओगे. अरे हंसो तो कुछ लोग सोचते है क्या पागल की तरह हंस रहा है. ऑफिसमें हंस नही सकते... किसी सुंदरीका काम आपके पल्ले पडने का डर है ... घरमें खुलकर हंस नही सकते... जेब कटने का डर है. इसिलिए शायद आजकल लाफ्टर क्लब में लोगोंकी भीड जरा जादाही जमने लगी है.

मै ऐसेही आज सुबह सुबह लाफ्टर क्लबके लिए निकला था. रस्तेसे उसतरफ से एक आदमी आ गया. अक्सर मै उसे लाफ्टर क्लब में देखता था. उसको देखतेही मैने उसे एक मिठीसी मुस्कान दी. और आश्चर्य की बात उसने भी मुस्कान का जवाब मुस्कान सेही दिया. ... क्योंकी आजकल ऐसा बहोत कम देखा जाता है.

"" आप यहां इस कॉलनीमें रहते है? '' मैने पुछा.

"" हां ... आप कहां रहते है'' उसने पुछा.

"" उधर उस बगलवाली कॉलनी में'' मैने जवाब दिया.

एक ही बिल्डींगमें आमने सामने रहनेवाले लोगभी अगर ऐसी बातें करें ... तो आजकल आश्चर्य नही होना चाहिए.

बातें बढते बढते... कहां काम करते है... घर में कौन कौन काम करता है... से लेकर कितना पॅकेज मिलता है यहां तक पहूंच गई. फिर इन्कम टॅक्स का सरल फॉर्म भरा क्या ... उसमे कौनसा डिडक्शन बताया.. वैगेरा वैगेरा. उस सरल फॉर्म के बारेमें मुझे हमेशा एक सवाल आता है की ... इतने तेडे फॉर्म को सरल किस हिसाब से कहते है?

फिर बातें बदलकर आज आदमी ने कितनी तरक्की कर ली इस विषय पर आकर रुकी. उस आदमी का कहना था की आज आदमी चांदसे आगे मंगल पर जाने की सोच रहा है. फोन टीव्ही मोबाईल इन्टरनेट के जरीये आदमी कितना भी दूर क्यों ना हो क्षणोंमे बात हो जाती है. वैगेरा वैगेरा...

मैने कहा यह कैसी? तरक्की इसको भी क्या तरक्की कहते है...

इतनेमे लाफ्टरक्लब का पार्क आगया और हमारी बाते बंद हूई...